इक प्यास में हमेशा
महफिल में शमा क्यों कर अब तक मचल रही है
मधिम सी रौशनी में वो खुद ही जल रही है॥
इक प्यास में हमेशा रातें सरक रही है
तुझे देखने को आँखे अब तक तरस रही है॥
ऐसे न डूबते हम गर हाथ थाम लेते
मौजों की गोद में अब कश्ती सँभल रही है॥
था मर्ज वो पुराना जिसकी न थी दवा भी
तेरी निगाह शफा का अब काम कर रही है॥
अनजान राह पर यूँ, चलना न था मुनासिब
फिर भी चुनौती बनके हर साँस चल रही है़॥
यूँ तो किया मुतासिर मुझे जिँदगी ने देवी
क्यों ठोकरों ने जाने कर दर बदर रही है॥
Labels: GHAZAL
बदनाम नाम वाले
बदनामियों के भी ढँग, अब तो बदल रहे हैं
रुसवाइयों के भी ढँग, अब तो बदल रहे हैं ॥
कैसी चली हवाएँ, जहरीली ये खिजाएँ
आजादियों के भी ढँग, अब तो बदल रहे हैं ॥
अबादियों में जिँदा, बरबाद फिर भी आदम
बरबादियों के भी ढँग, अब तो बदल रहे हैं ॥
कैसे खनकती दौलत, मुशकिल करे ये जीना
दुशवारियों के भी ढँग, अब तो बदल रहे हैं ॥
जँजीर वादों की पहना, यह वक्त ही नचाये
मजबूरियों के भी ढँग, अब तो बदल रहे हैं ॥
है शादमाने कहीं तो, मातम की महफिलें भी
शहनाइयों के भी ढँग, अब तो बदल रहे हैं ॥
है भीड में अकेला अब आज का ये आदम
तन्हाइयों के भी ढँग, अब तो बदल रहे हैं
दुशवारियो से ढाँपे तन, मन, बदन ऐ देवी
अच्छाइयों के भी ढँग, अब तो बदल रहे हैं ॥
Labels: GHAZAL
सच हमें सहला रहा
सपने में "सच" आ हमें सहला रहा
खोल आँखें झूठ है बहला रहा॥
आँसुओं की नींव पर शीशेमहल
पत्थरों की चोट से बचता रहा॥
अब खिजाँ, कल हो बहारें क्या पता
वक्त मौसम की तरह चलता रहा॥
सब यहाँ है पाप भी और पुण्य भी
हाथ इक दे दूसरा लौटा रहा॥
अब न शामिल है खुशी गम में मेरे
कल खुशी को देख गम हसता रहा॥
शेर चँद "वाह वाह" के लायक जब हुए
खुद को गालिब देवी क्यों कहला रहा॥
Labels: GHAZAL
ये खिजाँओं का ऐ कली
ये खिजाँओं का ऐ कली मौसम नहीं
तेरी खुशबू में ही लगता दम नहीं॥
स्वप्न आँखों ने तराशा था जो, उसे
आँसुओं से भी हुआ है नम नहीं॥
मौत का क्यों खौफ दिल में बस गया
जीने से बेहतर यहाँ मौसम नहीं॥
हम बहारों के नहीं आदी बहुत
इसलिये बरबादियों का गम नहीं॥
आशियाँ दिल का रहा उजडा हुआ
सज रही है बज्म पर सरगम नहीं॥
जशन किस किस का मनाऊँ देवी मैं
गम खुशी का दिल में जब मातम नहीं॥
Labels: GHAZAL
बहूत ऊँचा है उठे गिर कर
बहुत ऊँचा है उठे गिर कर सनम
अब तो नीचे देख कर डरते है हम॥
स्वप्न आँखों ने तराशा था उसे
आँसुओं से भी सजा पाए न हम॥
दर्द के आँसू बहुत हमने पिये
पर न जाने क्यों बहक पाए न हम॥
आईना बातें हमीं से कर रहा
मोड सच से मुँह तब पाए न हम॥
होश में है जिंदगी बेहोश हम
लडखडाहट में सँभल पाए न हम॥
Labels: GHAZAL
गर्दिशे तकदीर समझ पाए न हम
गर्दिशे तकदीर समझ पाए न हम
हाथ की रेखा बदल पाए न हम॥
होश में है जिंदगी बेहोश हम
लडखडाहट में सँभल पाए न हम॥
अश्क की स्याही से लिखी जो गजल
दुख यही है गा मगर पाए न हम॥
फूल जैसे मखमली रिश्ते सभी
खलिश उनमें क्यों समझ पाए न हम?
आजमाए हौसले हमने सदा
छू बुलँदी भी मगर पाए न हम॥
Labels: GHAZAL
आईना बातें हमीं से कर रहा
आईना बातें हमीं से कर रहा
देख उसको अक्स मेरा डर रहा॥
तुम ह्रदय का हार हो परवरदिगार
आत्मा! तेरे लिये "तन" घर रहा॥
उम्र की मोहलत मिली है वक्त से
जाया उस टक्साल को क्यों कर रहा?
आसमानी राहतों पर हक तेरा
क्यों है झोली कौडियों से भर रहा?
हुस्न का देखो नजारा, नाद भी
घर के घर में गौर से सुन बज रहा॥
सिर पे देवी मौत की लटकी तरार
बेरुखी से बँदगी क्यों कर रहा?
Labels: GHAZAL
मौत मँजिल है तेरी महफिल नहीं
क्यों तू कतरा दोस्ती से फिर रहा
जोड नाता अजनबी से फिर रहा॥
मौत मँजिल है तेरी महफिल नहीं
क्यों सजाता जिंदगी से फिर रहा?
कुछ खुशी खाइश के दामन से चुरा
मोर बनके क्यों खुशी से फिर रहा॥
दाग दामन के गए अब तक नहीं
धोता उसको गँदगी से फिर रहा॥
है हकीकत से सभी का वास्ता
क्यों चुरा आँखें उसी से फिर रहा॥
Labels: GHAZAL
लरजते अश्क आँखों के
लरजते अश्क आँखों के दिये जाते गवाही है
उन्हीं बहते हुए अश्कों से मेरी आशनाई है॥
तुम्हारी आँख में झाँका तो देखी खुद की परछाई
पलटके जो नजर देखी वहाँ तो तुम थे हरजाई॥
तुम्हारे खत में ताजा है अभी भी प्यार की खुशबू
इन्हीं भीन हुए शब्दों से न मिल पाई रिहाई है॥
पुराने जख्म ही नासूर बनके छेडते दिल को
लबों पर मुस्कराहट ये उन्होंने ही सजाई है॥
हवाएँ आज शोखी से न जाने क्यों है लहराई
सरक कर सर से आँचल पर ये चुनरी जाने क्यों आई॥
नजर से मिल नजर ने जब जलाये दीप महफिल में
उन्हीं लम्हों की यादों से जगी अब रौशनाई है॥
Labels: GHAZAL
न तुम आए न नींद आई
न तुम आए न नींद आई निराशा भोर ले आई
तुम्हें सपने में कल देखा उसीसे आँख भर आई॥
सुहाने ख्वाब पलकों पर सजाए कल थे जो मैंने
लगा क्यों आज काँटों से लदी सूली है लटकाई॥
निराशाओं के बरपट पर लगा इक आस का बूटा
फला फूला वो कुछ ऐसे ज्यूँ सइरा में बहार आई॥
तरसना भी, तडपना भी, नसीबों की यहाँ बाजी
खरीदारों की बोली पर बिके हर चीज सौदाई॥
कभी ज्यादा कभी कम ये खुशी गम होते रहते हैं
किसी भी एक का दामन न दुनियाँ पूरा भर पाई॥
Labels: GHAZAL
खुशी का भी छुपा गम में
खुशी का भी छुपा गम में कभी सामान होता है
कभी गम में खुशी का नाम क्यों गुमनाम होता है॥
हुई है आँख मेरी नम न जाने बज्म में भी क्यों
जहाँ जज्बे रहे गूँगे, खनक का दाम होता है॥
कद्र अरमान का करना, यही शायद गुमाँ मेरा
समझ पाना यहाँ खुद को कहाँ आसान होता है॥
सच्चाई से मैं वाकिफ हूँ, बखूबी फिर भी जाने क्यों
कभी सच को ही झुठलाना बडा आसान होता है॥
निराशा मौत सी होती है, आशा जिँदगी देवी
अँधेरों में कभी पर रौशनी का जाम होता है॥
Labels: GHAZAL
बडा इन्सान कद में हो
बडा इन्सान कद में हो तो उसका नाम होता है
जिक्र शोहरत की महफिल में उसीका आम होता है॥
खुशी की चाँदनी में चैन पाता है कोई, किसको
पसीना श्रम का है गर तो, बडा आराम होता है॥
बहारों में निखरता जो न देखा, वो खिजाओं में
थिरकती रँग बू को देखना अँजाम होता है॥
गुमाँ दौलत का होता है, किसीको नाज गुरबत पर
किसी का नाम होता है, कोई बदनाम होता है॥
अमीरी में बसी गहरी बुराई की है बुनियादें
मगर देवी गरीबी पर बहुत इल्जाम होता है॥
Labels: GHAZAL
बिलोडा सोच का सागर..सुनामी
बिलोडा सोच का सागर लिखा वो ख्याल जो आया
समझ मेरी को कोई क्यों, अभी तक ना समझ पाया॥
पनाह पाई है जीवन ने, रिहा है मौत का साया
न पूछी आखिरी ख्वाइश, गजब जुल्मात है ढाया॥
सुनामी ने सजाई मौत की महफिल फिजाओं में
शिकारी मौत ने अपने शिकँजों से कफन लाया॥
सदा से होता आया है, रहेगा ये चलन कल भी
न जिसका जोर है चलता, उसी पर है गजब ढाया॥
हसे थे खिलखिलाकर जख्म, भरी महफिल में जब मेरे
तभी कुछ और टूटा था, लगा वो रूह का साया॥
इमारत जो बनी भय की कची बुनियाद पर देवी
खलल बन खौफ का खतरा, रहे जीवन का सरमाया॥
Labels: GHAZAL
पत्थर के वो मकान भी
पत्थर के वो मकान भी क्या घर बने कभी
जो दे चराग रौशनी, वो है बुझे अभी॥
शीशे महल के लोग वो पत्थर के है बने
दुख दर्द देख और का रोते न थे कभी॥
माना के अश्क बन सके मोती कभी कभी
अक्सर मिट्टी से मिलके वो मिटी बने कभी॥
अपना वजूद ढूँढ लो अपने जमीर में
पहचान पालो आज ही कल हो न ये कभी॥
मेरी बँदगी में ऐ रबा बस एक तू ही तूले
ना न इम्तिहान ऐ मालिक मेरे कभी॥
Labels: GHAZAL
जुदाई का आलम
जुदाई का आलम जिये जा रहे हम
तुम्हारी तडप को पिये जा रहे हम॥
बिना पर उडी जो मैं आकाश छूने
खुले जख्म वो फिर दिये थे जो तूने
उडी जितना ऊँचा मिले उतने ही गम॥
भरा दिल है मेरा भरी मेरी आँखे
मेरा दर्द पिघला अगर कोई झांके
लगे ज्यूं लगाया किसीने है मरहम॥
बडी बेरहम थी चली जो हवाएँ
उडा कर गई आशियाँ वो खिजाएँ
लुटी राह में कैसे गाऊँ मै सरगम॥
सिसकती रही दर्द की चीख ऐसे
हवा में उठी गूँज आवाज जैसे
मनाता हो ज्यूँ कोई अपना ही मातम॥
अरे बादलो ! ना बरसना कभी तुम
नयन अश्क से हो गये आज पुरनम
गले मिल चलें हो जहाँ और मौसम॥
Labels: GHAZAL
लबों पर गिले है सजाते रहे हम
लबों पर गिले है सजाते रहे हम
तुम्हारी वफाओं से सहला रहे हम॥
यकीनों की कश्ती भँवर में फँसी थी
यूँ ही राह पर डगमगाते रहे हम॥
रहा आशियाँ दिल का उजडा हुआ, पर
उम्मीदों की महफिल सजाते रहे हम॥
लिये आँख में कुछ उदासी के दीपक
तडप से उन्हें ही जलाते रहे हम॥
न आबाद दिल में रहे ख्वाब देवी
हाँ! बरबादियों से निभाते रहे हम॥
देवी नागरानी, गजल २५ जून २००५Labels: GHAZAL