Thursday, April 07, 2011

अनबुझी प्यास रूह की है ग़ज़ल

ग़ज़लः 2
अनबुझी प्यास रूह की है ग़ज़ल
खुश्क होठों की तिश्नगी है ग़ज़ल

उन दहकते से मंज़रो की क़सम
इक दहकती सी जो कही है ग़ज़ल

नर्म अहसास मुझको देती है
धूप में चांदनी लगी है ग़ज़ल

इक इबादत से कम नहीं हर्गिज़
बंदगी सी मुझे लगी है ग़ज़ल

बोलता है हर एक लफ़्ज़ उसका
गुफ़्तगू यूँ भी कर रही है ग़ज़ल

मेहराबाँ इस क़दर हुई मुझपर
मेरी पहचान बन गई है ग़ज़ल

उसमें हिंदोस्ताँ की खु़शबू है
अपनी धरती से जब जुड़ी है ग़ज़ल

उसका श्रंगार क्या करूँ देवी
सादगी में भी सज रही है ग़ज़ल
देवी नागरानी

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4 टिप्पणी:

At 1:02 AM, Blogger vijay kumar sappatti उवाच...

देवी जी , नमस्कार .. बहुत ही सुन्दर गज़ल लिखी है आपने .. अपने देश कि मिटटी तो याद आती ही है ... और साथ में पुरानी यादे भी ले आती है . बहुत सुन्दर .. बधाई जी

आभार
विजय
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कृपया मेरी नयी कविता " फूल, चाय और बारिश " को पढकर अपनी बहुमूल्य राय दिजियेंगा . लिंक है : http://poemsofvijay.blogspot.com/2011/07/blog-post_22.html

 
At 1:47 AM, Blogger Dr (Miss) Sharad Singh उवाच...

बेहतरीन ग़ज़ल...
पहली बार आपके ब्लॉग्स पर आई हूं किन्तु पत्रिकाओं में पहले भी आपकी रचनाओं के पढ़ा है...यहां पढ़ना सुखद लगा.

 
At 6:30 PM, Blogger Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार उवाच...





आपको सपरिवार
नवरात्रि पर्व की बधाई और शुभकामनाएं-मंगलकामनाएं !

-राजेन्द्र स्वर्णकार

 
At 6:07 PM, Blogger Rajendra Swarnkar : राजेन्द्र स्वर्णकार उवाच...



♥(¯`'•.¸(¯`•*♥♥*•¯)¸.•'´¯)♥
♥नव वर्ष मंगबलमय हो !♥
♥(_¸.•'´(_•*♥♥*•_)`'• .¸_)♥




मेहरबाँ इस क़दर हुई मुझ पर
मेरी पहचान बन गई है ग़ज़ल

बिलकुल दुरुस्त फरमाया आपने ...
वाह वाऽह ! क्या बात है !

आदरणीया देवी नांगरानी जी
सादर प्रणाम !

आपकी ग़ज़लों का मैं हमेशा ही मुरीद रहा हूं ...
आपका ताज़ा कलाम पढ़ने की बहुत इच्छा रहती है...

आप अपनी लेखनी से सदैव सुंदर , सार्थक , श्रेष्ठ सृजन का सारस्वत प्रसाद ऐसे ही बांटती रहें …

नव वर्ष २०१३ की शुभकामनाओं सहित…
राजेन्द्र स्वर्णकार
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31 दिसंबर 2012

 

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