लिखी चेहरों पे भूखे-प्यासों की भाषा
ग़ज़लः ४१लिखी चेहरों पे भूखे-प्यासों की भाषा
पढ़े तो कोई उनके नालों की भाषा
अगर इल्म होता तो हरगिज़ न कहते
है बेमानी दिल की उम्मीदों की भाषा
सुनो गौर से सच जो मैं कह रहा हूँ
नक़ाबों पे लिखी फ़रेबों की भाषा
दिए फूल-फल शुक्र उनका भी करते
समझ पाते जो पेड़ -पौधों की भाषा
कहाँ आती है कायरों को समझ में
वो चट्टान जैसी इरादों की भाषा
न ईमान की हमसे बातें करो तुम
तिजारता हुई है ज़मीरों की भाषा
देवी नागरानी
Labels: GHAZAL
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