Saturday, March 26, 2011

लिखी चेहरों पे भूखे-प्यासों की भाषा

ग़ज़लः ४१

लिखी चेहरों पे भूखे-प्यासों की भाषा
पढ़े तो कोई उनके नालों की भाषा

अगर इल्म होता तो हरगिज़ न कहते
है बेमानी दिल की उम्मीदों की भाषा

सुनो गौर से सच जो मैं कह रहा हूँ
नक़ाबों पे लिखी फ़रेबों की भाषा

दिए फूल-फल शुक्र उनका भी करते
समझ पाते जो पेड़ -पौधों की भाषा

कहाँ आती है कायरों को समझ में
वो चट्टान जैसी इरादों की भाषा

न ईमान की हमसे बातें करो तुम
तिजारता हुई है ज़मीरों की भाषा
देवी नागरानी

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