Saturday, March 26, 2011

आज मुझको नदी उदास लगी

ग़ज़लः २६

आज मुझको नदी उदास लगी
जाने कैसी है उसको प्यास लगी

बारिशों में नहा चुके हैं बहुत,
धूप की अब तो दिल में आस लगी

आँख पर था चढ़ा हरा चश्मा
सारी दुनिया ही सब्ज़ घास लगी

सहरा में देख कर सराबों को
और भी तिश्नगी को प्यास लगी

कुछ तो बदलाव उसमें आया था
कुछ न थी जो कभी, वो ख़ास लगी

रक्स करने लगी थी यूं रिमझिम
क्रष्ण राधा की जैसे रास लगी

हम सफ़र राह में था साथ मेरे
जो भी दूरी थी वो भी पास लगी
देवी नागरानी

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