Friday, March 25, 2011

गुदगुदाती है मुझको हंसाती ग़ज़ल

ग़ज़लः ८

दूर दिल से मेरा ग़म भगाती ग़ज़ल
गुदगुदाती है मुझको हंसाती ग़ज़ल

जुगनुओं से भी उसको मिली रोशनी
तीरगी में रही झिलमिलाती ग़ज़ल

धूप में, छांव में, बारिशों में कभी
तो कभी चांदनी में नहाती ग़ज़ल

कैसी ख़ुश्बू है ये उसकी गुफ़्तार में
रंगों-बू को चमन की लजाती ग़ज़ल

जब भी खाने को दौड़ी है तन्हाइयाँ
मेरी इमदाद को दौड़ी आती ग़ज़ल

जब भी तन्हाइयों की घुटन बढ़ गई
शोर ख़ामोशियों में मचाती ग़ज़ल

उसके विपरीत लिखकर तो देखो ज़रा
कैसे फिर देखना तिलमिलाती ग़ज़ल.
या
उसके विपरीत लोगों ने लिक्खा बहुत
शान से आगे बढ़ती ही जाती ग़ज़ल

दोनों कागज़, कलम कैसे चुप हैं हुए
सोच को मेरी जब थपथपाती ग़ज़ल॰॰

पास उसके न देवी कभी जाना तुम
वो जो छूने से है कसमसाती ग़ज़ल
देवी नागरानी

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