शोर दिल में मचा नहीं होता
ग़ज़लः 5शोर दिल में मचा नहीं होता
गर उसे कुछ हुआ नहीं होता
काश! वो भी कभी बदल जाते
सोच में फासला नहीं होता
कुछ कशिश है ज़मीन में वर्ना
आसमाँ यूँ झुका नहीं होता
झूठ की बे-सिबातियों की क़सम
सच के आगे खड़ा नहीं होता
अपना नुक्सान यूँ न करता वो
तैश में आ गया नहीं होता
नज़रे-आतिश न होती बस्ती यूँ
गर मेरा दिल जला नहीं होता
दर्द 'देवी' का जानता कैसे
ग़म ने उसको छुआ नहीं होता
देवी नागरानी
Labels: GHAZAL
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