वो ही मिटा रहा है नामो-निशाँ हमारा
ग़ज़लः४वो ही मिटा रहा है नामो-निशाँ हमारा
जो आज तक रहा था जाने-जहाँ हमारा
दुशमन से जा मिला है अब बागबाँ हमारा
सैयाद बन गया है लो राज़दाँ हमारा
ज़ालिम की ज़ुल्म का भी किससे गिला करें हम
कोई तो एक आकर सुनता बयाँ हमारा
हर बार क्यों नज़र है बर्क़े-तपाँ की उसपर
हर बार है निशाना क्यों आशियाँ हमारा
दुश्मन का भी भरोसा जिसने कभी न तोड़ा
बस उस यकीं पे चलता है कारवाँ हमारा
बहरों की महफिलों में हम चीख़ कर करें क्या
चिल्लाना-चीख़ना सब है रायगाँ हमारा
परकैंच वो परिंदे हसरत से कह रहे हैं
देवी नहीं रहा अब ये आसमां हमारा
देवी नागरानी
Labels: GHAZAL
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