अपने ही घर को जलाया
गज़लः९४
चराग़ों ने अपने ही घर को जलाया
जहाँ की नजर में तमाशा बनाया.१
बहुत आज़माया है अपनों को हमने
मुकद्दर ने जब जब हमें आज़माया. २
जो शमा मेरे साथ जलती रही हो
अँधेरा उसी रोशनी का है साया. ३
रही राहतों की बड़ी मुँतज़र मैं
मगर चैन दुनियां में हरगिज़ न पाया.४
सँभल जाओ अब भी समय है ऐ देवी
कयामत का अब वक्त नज़दीक आया.४
॰॰
गजलः ९५
वो अदा प्यार भरी याद मुझे है अब तक.
बात बरसों की मगर कल की लगे है अब तक.१
हम चमन में ही बसे थे वो महक पाने को
ख़ार नश्तर की तरह दिल में चुभे है अब तक.२
जा चुका कब का ये दिल तोड़ के जाने वाला
आखों में अश्कों का ये दरिया बहे है अब तक.३
आशियां जलके हुआ राख ज़माना पहले
और रह रह के धुआँ उसका उठा है अब तक.४
क्या खबर वक्त ने कब घाव दिये थे देवी
सँग दिल हो न सके खून बहे है अब तक.७
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गज़लः९६
देख कर तिरछी निगाहों से वो मुस्काते हैं
जाने क्या बात मगर करने से शरमाते हैं.१
मेरी यादों में तो वो रोज चले आते हैं
अपनी आँखों में बसाने से वो कतराते हैं.२
दिल के गुलशन में बसाया था जिन्हें कल हमने
आज वो बनके खलिश जख्म दिये जाते हैं.३
बेवफा मैं तो नहीं हूं ये उन्हें है मालूम
जाने क्यों फिर भी मुझे दोषी वो ठहराते हैं.४
मेरी आवाज़ उन्होंने भी सुनी है, फिर क्यों
सामने मेरे वो आ जाने से करताते हैं.५
दिल के दरिया में अभी आग लगी है जैसे
शोले कैसे ये बिना तेल लपक जाते हैं.६
रँग दुनियां के कई देखे है देवी लेकिन
प्यार के इँद्रधनुष याद बहुत आते हैं. ७
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