Saturday, November 18, 2006

गुबार ही गुबार है


ये कौन आ गया भला ये किस कदर खुमार है
ऋतू तो नहीं बहार की फिर भी लगे बहार है.१

दोस्तों दुशमनों में भी उसका न अब खुमार है
ऐसी कतार में खदा वो आज पहली बार है.२

मैं जिस ज़मीं पे हूँ खडी, गुबार ही गुबार है
है दिल में सबकी नफरतें, खुलूस है न प्यार है.३

ऐ दिल चलो चलें मगर,जरा सा दम तो ले कहीं
मँजिल नहीं है सामने, रस्ते यहां हजार है.४

है कौन जिससे कह सकूं, जख्मे जिगर की बात मैं
मैं सबको आजमा चुकी, कोई न राजदार है.५

वीरान दिल की राह पर, आहट न कोई है सदा
शाम आ गई सहर हुई, क्यों किसका इन्हजार है. ६

हम मुस्कराने की सजा पाते रहे हैं उम्र भर
देवी हमारी जिंदगी हर वक्त अश्कबार है. ७

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