कभी ऐ हकीकते मुंतज़िर..
११२१२,११२१२ ..कभी ऐ हकीकते मुंतज़िर..
उसे इश्क क्या है पता नहीं
कभी शम् अ पर वो जला नहीं.१
वो जो हार कर भी है जीतता
उसे कहते हैं वो जुआ नहीं.२
है अधूरी सी मेरी जिंदगी
मेरा कुछ तो पूरा हुआ नहीं.३
यूँ तों देखने में वो सख्त है
वैसे आदमी वो बुरा नहीं.४
जो मिटा दे मेरी उदासियां
कभी साज़े दिल यूं मिला नहीं.५
न बुझा सकेंगी ये आँधियां
ये चिराग़े दिल है, दिया नहीं.६
मेरे हाथ आई बुराइयां
मेरी नेकियों को गिला नहीं.७
मैं जो अक्स दिल का उतार लूं
मुझे आइना वो मिला नहीं.८
Labels: GHAZAL
2 टिप्पणी:
वाह ! बहुत खूब
Thanks manish
Devi
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