Sunday, April 23, 2006

बहूत ऊँचा है उठे गिर कर

बहुत ऊँचा है उठे गिर कर सनम
अब तो नीचे देख कर डरते है हम॥

स्वप्न आँखों ने तराशा था उसे
आँसुओं से भी सजा पाए न हम॥

दर्द के आँसू बहुत हमने पिये
पर न जाने क्यों बहक पाए न हम॥

आईना बातें हमीं से कर रहा
मोड सच से मुँह तब पाए न हम॥

होश में है जिंदगी बेहोश हम
लडखडाहट में सँभल पाए न हम॥

Labels:

0 टिप्पणी:

Post a Comment

<< Home