मौत मँजिल है तेरी महफिल नहीं
क्यों तू कतरा दोस्ती से फिर रहाजोड नाता अजनबी से फिर रहा॥
मौत मँजिल है तेरी महफिल नहीं
क्यों सजाता जिंदगी से फिर रहा?
कुछ खुशी खाइश के दामन से चुरा
मोर बनके क्यों खुशी से फिर रहा॥
दाग दामन के गए अब तक नहीं
धोता उसको गँदगी से फिर रहा॥
है हकीकत से सभी का वास्ता
क्यों चुरा आँखें उसी से फिर रहा॥
Labels: GHAZAL
0 टिप्पणी:
Post a Comment
<< Home