Sunday, April 23, 2006

मौत मँजिल है तेरी महफिल नहीं

क्यों तू कतरा दोस्ती से फिर रहा
जोड नाता अजनबी से फिर रहा॥

मौत मँजिल है तेरी महफिल नहीं
क्यों सजाता जिंदगी से फिर रहा?

कुछ खुशी खाइश के दामन से चुरा
मोर बनके क्यों खुशी से फिर रहा॥

दाग दामन के गए अब तक नहीं
धोता उसको गँदगी से फिर रहा॥

है हकीकत से सभी का वास्ता
क्यों चुरा आँखें उसी से फिर रहा॥

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