जुदाई का आलम
जुदाई का आलम जिये जा रहे हमतुम्हारी तडप को पिये जा रहे हम॥
बिना पर उडी जो मैं आकाश छूने
खुले जख्म वो फिर दिये थे जो तूने
उडी जितना ऊँचा मिले उतने ही गम॥
भरा दिल है मेरा भरी मेरी आँखे
मेरा दर्द पिघला अगर कोई झांके
लगे ज्यूं लगाया किसीने है मरहम॥
बडी बेरहम थी चली जो हवाएँ
उडा कर गई आशियाँ वो खिजाएँ
लुटी राह में कैसे गाऊँ मै सरगम॥
सिसकती रही दर्द की चीख ऐसे
हवा में उठी गूँज आवाज जैसे
मनाता हो ज्यूँ कोई अपना ही मातम॥
अरे बादलो ! ना बरसना कभी तुम
नयन अश्क से हो गये आज पुरनम
गले मिल चलें हो जहाँ और मौसम॥
Labels: GHAZAL
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