Thursday, April 20, 2006

लबों पर गिले है सजाते रहे हम

लबों पर गिले है सजाते रहे हम
तुम्हारी वफाओं से सहला रहे हम॥

यकीनों की कश्ती भँवर में फँसी थी
यूँ ही राह पर डगमगाते रहे हम॥

रहा आशियाँ दिल का उजडा हुआ, पर
उम्मीदों की महफिल सजाते रहे हम॥

लिये आँख में कुछ उदासी के दीपक
तडप से उन्हें ही जलाते रहे हम॥

न आबाद दिल में रहे ख्वाब देवी
हाँ! बरबादियों से निभाते रहे हम॥

देवी नागरानी, गजल २५ जून २००५

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