Friday, April 21, 2006

बिलोडा सोच का सागर..सुनामी

बिलोडा सोच का सागर लिखा वो ख्याल जो आया
समझ मेरी को कोई क्यों, अभी तक ना समझ पाया॥

पनाह पाई है जीवन ने, रिहा है मौत का साया
न पूछी आखिरी ख्वाइश, गजब जुल्मात है ढाया॥

सुनामी ने सजाई मौत की महफिल फिजाओं में
शिकारी मौत ने अपने शिकँजों से कफन लाया॥

सदा से होता आया है, रहेगा ये चलन कल भी
न जिसका जोर है चलता, उसी पर है गजब ढाया॥

हसे थे खिलखिलाकर जख्म, भरी महफिल में जब मेरे
तभी कुछ और टूटा था, लगा वो रूह का साया॥

इमारत जो बनी भय की कची बुनियाद पर देवी
खलल बन खौफ का खतरा, रहे जीवन का सरमाया॥

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