लरजते अश्क आँखों के
लरजते अश्क आँखों के दिये जाते गवाही हैउन्हीं बहते हुए अश्कों से मेरी आशनाई है॥
तुम्हारी आँख में झाँका तो देखी खुद की परछाई
पलटके जो नजर देखी वहाँ तो तुम थे हरजाई॥
तुम्हारे खत में ताजा है अभी भी प्यार की खुशबू
इन्हीं भीन हुए शब्दों से न मिल पाई रिहाई है॥
पुराने जख्म ही नासूर बनके छेडते दिल को
लबों पर मुस्कराहट ये उन्होंने ही सजाई है॥
हवाएँ आज शोखी से न जाने क्यों है लहराई
सरक कर सर से आँचल पर ये चुनरी जाने क्यों आई॥
नजर से मिल नजर ने जब जलाये दीप महफिल में
उन्हीं लम्हों की यादों से जगी अब रौशनाई है॥
Labels: GHAZAL
0 टिप्पणी:
Post a Comment
<< Home