Sunday, April 23, 2006

आईना बातें हमीं से कर रहा

आईना बातें हमीं से कर रहा
देख उसको अक्स मेरा डर रहा॥

तुम ह्रदय का हार हो परवरदिगार
आत्मा! तेरे लिये "तन" घर रहा॥

उम्र की मोहलत मिली है वक्त से
जाया उस टक्साल को क्यों कर रहा?

आसमानी राहतों पर हक तेरा
क्यों है झोली कौडियों से भर रहा?

हुस्न का देखो नजारा, नाद भी
घर के घर में गौर से सुन बज रहा॥

सिर पे देवी मौत की लटकी तरार
बेरुखी से बँदगी क्यों कर रहा?

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