आईना बातें हमीं से कर रहा
आईना बातें हमीं से कर रहादेख उसको अक्स मेरा डर रहा॥
तुम ह्रदय का हार हो परवरदिगार
आत्मा! तेरे लिये "तन" घर रहा॥
उम्र की मोहलत मिली है वक्त से
जाया उस टक्साल को क्यों कर रहा?
आसमानी राहतों पर हक तेरा
क्यों है झोली कौडियों से भर रहा?
हुस्न का देखो नजारा, नाद भी
घर के घर में गौर से सुन बज रहा॥
सिर पे देवी मौत की लटकी तरार
बेरुखी से बँदगी क्यों कर रहा?
Labels: GHAZAL
0 टिप्पणी:
Post a Comment
<< Home