Sunday, April 23, 2006

ये खिजाँओं का ऐ कली

ये खिजाँओं का ऐ कली मौसम नहीं
तेरी खुशबू में ही लगता दम नहीं॥

स्वप्न आँखों ने तराशा था जो, उसे
आँसुओं से भी हुआ है नम नहीं॥

मौत का क्यों खौफ दिल में बस गया
जीने से बेहतर यहाँ मौसम नहीं॥

हम बहारों के नहीं आदी बहुत
इसलिये बरबादियों का गम नहीं॥

आशियाँ दिल का रहा उजडा हुआ
सज रही है बज्म पर सरगम नहीं॥

जशन किस किस का मनाऊँ देवी मैं
गम खुशी का दिल में जब मातम नहीं॥

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