Sunday, April 23, 2006

बदनाम नाम वाले

बदनामियों के भी ढँग, अब तो बदल रहे हैं
रुसवाइयों के भी ढँग, अब तो बदल रहे हैं ॥

कैसी चली हवाएँ, जहरीली ये खिजाएँ
आजादियों के भी ढँग, अब तो बदल रहे हैं ॥

अबादियों में जिँदा, बरबाद फिर भी आदम
बरबादियों के भी ढँग, अब तो बदल रहे हैं ॥

कैसे खनकती दौलत, मुशकिल करे ये जीना
दुशवारियों के भी ढँग, अब तो बदल रहे हैं ॥

जँजीर वादों की पहना, यह वक्त ही नचाये
मजबूरियों के भी ढँग, अब तो बदल रहे हैं ॥

है शादमाने कहीं तो, मातम की महफिलें भी
शहनाइयों के भी ढँग, अब तो बदल रहे हैं ॥

है भीड में अकेला अब आज का ये आदम
तन्हाइयों के भी ढँग, अब तो बदल रहे हैं

दुशवारियो से ढाँपे तन, मन, बदन ऐ देवी
अच्छाइयों के भी ढँग, अब तो बदल रहे हैं ॥

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