Sunday, March 06, 2011

1.देवाँगन: वतन की याद आती है

" देवाँगन" मेरे मन का गुलशन है जहां मेंने मेरे जीवन के तमाम मुरझाए, महकते सुमन यहाँ संजो कर रक्खे हैं. इन्हीं की बदौलत आज मैं अपने धड़कनों में एक ख़ूश्बू टहलती हुई पाती हूं, जिसके साथ सफ़र करते करते मैं आज यहां पर हूँ, इसी गुलशन से मेरी सांसें महक रही है.
देवी नागरानी

ग़ज़लः1

जुदाई से नयन है नम, वतन की याद आती है
बहे काजल न क्यों हरदम, वतन की याद आती है

समय बीता बहुत लंबा हमें परदेस में रहते
न उसको भूल पाए हम, वतन की याद आती है

तड़पते हैं, सिसकते हैं, जिगर के ज़ख़्म सीते हैं
ज़ियादा तो कभी कुछ कम, वतन की याद आती है

चढ़ा है इतना गहरा रंग कुछ उसकी मुहब्बत का
हुए गुलज़ार जैसे हम, वतन की याद आती है

यहाँ परदेस में भी फ़िक्र रहती है हमें उसकी
हुए हैं ग़म से हम बेदम, वतन की याद आती है

हमारा दिल तो होता है बहुत मिलने मिलाने का
रुलाते फ़ासले हमदम, वतन की याद आती है

वही है देश इक ‘देवी’ अहिंसा धर्म है जिसका
लुटाता प्यार की शबनम, वतन की याद आती है.
देवी नागरानी

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