सुनते हैं कहाँ गौर से हम प्यारों की बातें
ग़ज़लः 6सुनते हैं कहाँ गौर से हम प्यारों की बातें
खुद से ही मिले जब भी की लाचारों की बातें
जाते हैं अयादत को उन्हें साथ लिए जो
खामोश वे गुल सुनते हैं बीमारों की बातें
वो बोल उठी जिनको तराशा किये शिल्पी
उनसे ही सुनी फन की व फनकारों की बातें
नीलाम जो अपनी ही खताओं से हुए हैं
उनसे न करो भूल के लाचारों की बातें
रोती हैं, सिसकती हैं गिरा के जो सरों को
सुन पाए कोई गौर से तलवारों की बातें
हों साफ़ जो आईने उठे हाथ दिखें फिर
करती हैं दुआएं भी यूँ तासीरों की बातें
लिखते हैं बही - खाते जो सच , झूठ के देवी
छेड़ो न कभी उनसे सदाचारों की बातें
देवी नागरानी
Labels: GHAZAL
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