Friday, March 11, 2011

सुनते हैं कहाँ गौर से हम प्यारों की बातें

ग़ज़लः 6

सुनते हैं कहाँ गौर से हम प्यारों की बातें
खुद से ही मिले जब भी की लाचारों की बातें

जाते हैं अयादत को उन्हें साथ लिए जो
खामोश वे गुल सुनते हैं बीमारों की बातें

वो बोल उठी जिनको तराशा किये शिल्पी
उनसे ही सुनी फन की व फनकारों की बातें

नीलाम जो अपनी ही खताओं से हुए हैं
उनसे न करो भूल के लाचारों की बातें

रोती हैं, सिसकती हैं गिरा के जो सरों को
सुन पाए कोई गौर से तलवारों की बातें

हों साफ़ जो आईने उठे हाथ दिखें फिर
करती हैं दुआएं भी यूँ तासीरों की बातें

लिखते हैं बही - खाते जो सच , झूठ के देवी
छेड़ो न कभी उनसे सदाचारों की बातें

देवी नागरानी

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