कुछ न कह कर भी सब कहा मुझसे
ग़ज़लः ३४कुछ न कह कर भी सब कहा मुझसे
जाने क्या था उसे गिला मुझसे
ऐब मेरे गिना रहा है जो
दोस्त बनकर गले मिला मुझसे
चंद साँसों की देके मुहलत यूँ,
ज़िंदगी चाहती है क्या मुझसे
जिसने रक्खा था कै़द में मुझको
वो रिहाई क्यों चाहता मुझसे.
क्या लकीरों की कोई साज़िश है,
रख रही हैं तुझे जुदा मुझसे
शोर ख़ामोशियों का मत पूछों
कह गई अपना हर गिला मुझसे
सिलसिला राहतों का टूट गया
आप जब से हुए जुदा खफ़ा मुझसे.
मुझसे ख़ाइफ़ हुआ वो दीवाना
खुद ही जब वो हुआ जुदा मुझसे
देवी नागरानी
Labels: GHAZAL
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