Saturday, March 26, 2011

रेत पर घर जो इक बनाया है

ग़ज़लः २८

रेत पर घर जो इक बनाया है
अपनी क़िस्मत को आज़माया है

रिश्ता दिल से रहा है जो अपना
अपना होकर भी वो पराया है

मैं सितारों को छू तो सकती हूँ
बीच में चाँद क्योंकर आया है

आज का हाल देख मुस्तक़बिल
कौन माज़ी को देख पाया है

बात जब अनसुनी रही मेरी
बात को दिल से तब लगाया है

क़त्ल उसने किया हे फिर भी क्यों
सर पे इल्ज़ाम मेरे आया है

रिश्ता वो ही निभाएगा ‘देवी’
जिसको रिश्ता समझ में आया है.
देवी नागरानी

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