ज़िंदगी एक आह होती है
ग़ज़लः २७ज़िंदगी एक आह होती है
मौत उसकी पनाह होती है
जुर्म जितने हुए हैं धरती पर
आसमाँ की निगाह होती है
इश्क में राहतो-सुकूँ ही नहीं
ज़िंदगानी तबाह होती है
पीठ पीछे बुराई मत करना
बात ऐसी गुनाह होती है
प्यास किसकी बुझी सराबों से
इक फ़रेबी निगाह होती है
निकले सूरत कोई उजाले की
रात अपनी सियाह होती है
मिट गई सारी चाहतें देवी
एक बस तेरी चाह होती है
देवी नागरानी
Labels: GHAZAL
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