Saturday, March 26, 2011

छू गई मुझको ये हवा जैसे

ग़ज़लः ३५

छू गई मुझको ये हवा जैसे
फूल के होंठ ने छुआ जैसे

उस तरह मैं कभी न जी पाई
जिंदगी ने मुझे जिया जैसे

याद हमको तेरी क्या आई है
ताज़ा हर ज़ख़्म है हुआ जैसे

जिस सहारे में पुख़्तगी ढूँढी
रेत का घर मुझे लगा जैसे

लुट गया शम्अ पे वो दीवाना
किस्सा सदियों का ये रहा जैसे

‘देवी’ दिल के हज़ार टुकड़े हैं
दिल हज़रों में बंट गया जैसे.
देवी नागरानी

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