Friday, April 01, 2011

लौ दर्दे-दिल की

ग़ज़ल

सिमटती जो जाएगी लौ दर्दे-दिल की

तो किस काम आएगी लौ दर्दे-दिल की

करें चाहे कितनी शरारत हवाएं

कभी मिट न पाएगी लौ दर्दे-दिल की

बिछेंगे उजाले जो हरसू ख़ुशी के

तो पहचान पाएगी लौ दर्दे-दिल की

उदासी के आँगन में शह्नाइयों के

सुरों को सजाएगी लौ दर्दे-दिल की

ग़ज़ल की इबादत जहाँ पर भी होगी

वहीँ सर झुकाएगी लौ दर्दे-दिल की

ज़मीरों का ज़ामिन जहाँ झूठ होगा

वहीं तिलमिलाएगी लौ दर्दे-दिल की

सुकूँ पा सकेगा जहाँ दर्द देवी

वहीं मुस्कराएगी लौ दर्दे-दिल की

देवी नागरानी

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