लौ दर्दे-दिल की
सिमटती जो जाएगी लौ दर्दे-दिल की
तो किस काम आएगी लौ दर्दे-दिल की
करें चाहे कितनी शरारत हवाएं
कभी मिट न पाएगी लौ दर्दे-दिल की
बिछेंगे उजाले जो हरसू ख़ुशी के
तो पहचान पाएगी लौ दर्दे-दिल की
उदासी के आँगन में शह्नाइयों के
सुरों को सजाएगी लौ दर्दे-दिल की
ग़ज़ल की इबादत जहाँ पर भी होगी
वहीँ सर झुकाएगी लौ दर्दे-दिल की
ज़मीरों का ज़ामिन जहाँ झूठ होगा
वहीं तिलमिलाएगी लौ दर्दे-दिल की
सुकूँ पा सकेगा जहाँ दर्द देवी
वहीं मुस्कराएगी लौ दर्दे-दिल की
देवी नागरानी
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