बेताबियों को हद से ज़िआदा बढ़ा गया
ग़ज़ल: ४२बेताबियों को हद से ज़िआदा बढ़ा गया
पिछ्ला पहर था रात को कोई जगा गया
मेरे ख़याल-ओ-ख़्वाब में ये कौन आ गया
दीपक मुहब्बतों के हज़ारों जला गया
कुछ इस तरह से आया अचानक वो सामने
मुझको झलक जमाल की अपने दिखा गया
इक आसमां में और भी हैं आसमां कई
मुझको हक़ीक़तों से वो वाकिफ़ करा गया
पलकें उठी तो उट्ठी ही देवी रहीं मेरी
झोंका हवा का पर्दा क्या उसका उठा गया
देवी नागरानी
Labels: Devangan GHAZAL
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