आओ सीखें हम अदा गुल-ख़ार से
ग़ज़लः ९
बंद कर दें वार करना अब ज़बाँ की धार से
दोस्ती की आओ सीखें हम अदा गुल-ख़ार से
अपनी मर्ज़ी से कहाँ टूटा है कोई आज तक
वो हुआ लाचार अपनी बेबसी की मार से
नज़्रे-आतिश बस्तियों में यूँ अंधेरा छा गया
साफ़ आएगा नज़र कुछ धुंध के उस पार से
करके मन की हर तरह हमने बिताई ज़िंदगी
याद कर लें अब अमल का पाठ गीता-सार से
बेख़बर खुद से सभी हैं, कौन किसकी ले खबर
सुर्ख़ियों की शोखियां झाँकें हैं हर अख़बार से
क्या है लेना, क्या है देना, दर्द से 'देवी' भला
फ़ायदा भी कुछ नहीं है दर्द के इज़हार से
देवी नागरानी
बंद कर दें वार करना अब ज़बाँ की धार से
दोस्ती की आओ सीखें हम अदा गुल-ख़ार से
अपनी मर्ज़ी से कहाँ टूटा है कोई आज तक
वो हुआ लाचार अपनी बेबसी की मार से
नज़्रे-आतिश बस्तियों में यूँ अंधेरा छा गया
साफ़ आएगा नज़र कुछ धुंध के उस पार से
करके मन की हर तरह हमने बिताई ज़िंदगी
याद कर लें अब अमल का पाठ गीता-सार से
बेख़बर खुद से सभी हैं, कौन किसकी ले खबर
सुर्ख़ियों की शोखियां झाँकें हैं हर अख़बार से
क्या है लेना, क्या है देना, दर्द से 'देवी' भला
फ़ायदा भी कुछ नहीं है दर्द के इज़हार से
देवी नागरानी
Labels: DEVANGAN
2 टिप्पणी:
अपनी मर्ज़ी से कहाँ टूटा है कोई आज तक
वो हुआ लाचार अपनी बेबसी की मार से
bahut sunder sher lagaa...
अपनी मर्ज़ी से कहाँ टूटा है कोई आज तक
वो हुआ लाचार अपनी बेबसी की मार से
bahut sunder sher laga ji
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