Thursday, April 07, 2011

हमें अपनी हिंदी ज़बाँ चाहिये

ग़ज़लः
हमें अपनी हिंदी ज़बाँ चाहिये
सुनाए जो लोरी वो माँ चाहिये

कहा किसने सारा जहाँ चाहिये
हमें सिर्फ़ हिन्दोस्ताँ चाहिये

जहाँ हिंदी भाषा के महकें सुमन
वो सुंदर हमें गुलसिताँ चाहिये

जहाँ भिन्नता में भी हो एकता
मुझे एक ऐसा जहाँ चाहिये

मुहब्बत के बहती हों धारे जहाँ
वतन ऐसा जन्नत निशाँ चाहिये

तिरंगा हमारा हो ऊँचा जहाँ
निगाहों में वो आसमाँ चाहिये

खिले फूल भाषा के देवी जहाँ
उसी बाग़ में आशियाँ चाहिये1
देवी नागरानी

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1 टिप्पणी:

At 8:11 AM, Blogger mridula pradhan उवाच...

bahut pyari kavita......

 

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