जुदाई से नयन है नम
ग़ज़लः1
जुदाई से नयन है नम, वतन की याद आती है
बहे काजल न क्यों हरदम, वतन की याद आती है
समय बीता बहुत लंबा
हमें परदेस में रहते
न उसको भूल पाए हम, वतन की याद आती है
तड़पते हैं, सिसकते हैं, हम अपने अश्क़ पीते हैं
ज़ियादा तो कभी कुछ
कम, वतन की याद आती है
चढ़ा है इतना गहरा रंग
कुछ उसकी मुहब्बत का
हुए गुलज़ार जैसे हम, वतन की याद आती है
यहाँ परदेस में भी फ़िक्र
रहती है हमें उसकी
हुए हैं ग़म से हम बेदम, वतन की याद आती है
हमारा दिल तो होता है
बहुत मिलने मिलाने का
रुलाते फ़ासले हमदम, वतन की याद आती है
वही है देश इक ‘देवी’ अहिंसा
धर्म है जिसका
लुटाता प्यार की शबनम, वतन की याद आती है.
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