गजलः १६१स्वप्न आँखों में बसा पाए न हमआँसुओं से भी सजा पाए न हम.किस गिरावट ने हमें ऊंचा किया
कोई अंदाजा लगा पाए न हम.दर्द के आँसू बहुत हमने पियेगै़र का अहसां उठा पाए न हम.हमने अश्कों से लिखी थी जो गज़लदुख है ये तुमको सुना पाए न हम.आईना अपनी ही सब कहता रहाहाले-दिल अपना सुना पाए न हम.आज़माए हौसले हमने सदा छू बुलँदी को कभी पाए न हम. **गजलः १६४ज़ूकाफिया और यक काफिया गज़लअच्छाइयों के ढ़ब सब अब तो बदल रहे हैं.
रुसवाइयों के भी ढ़ब अब तो बदल रहे हैं.कैसी चली हवाएँ, मस्ती में गुम है सारेआज़ादियों के भी ढ़ब अब तो बदल रहे हैं.आबादियों में जिँदा, बरबाद फिर भी आदमबरबादियों के भी ढ़ब अब तो बदल रहे हैं.खन खन खनकती दौलत मुशकिल करे हैजीनाआसानियों के भी ढ़ब अब तो बदल रहे हैं.जँजीर वादों की पहना, यह वक्त ही नचायेमजबूरियों के भी ढ़ब अब तो बदल रहे हैं.शादी की महफिलें हों, मातम की मजलसें भीशहनाइयों के भी ढ़ब अब तो बदल रहे हैं.है भीड़ में अकेला क्यों आज का ये आदमतन्हाइयों के भी ढ़ब अब तो बदल रहे हैं.दुशवारियों से ढाँपे तन, मन, बदन ऐ देवीअंगड़ाइयों के भी ढब, अब तो बदल रहे हैं.**
गजलः१५३ हम अभी से क्या बताऐं क्या हमारे दिल में है
कश-म-कश मे हैं अभी हम, हर कदम मुशकिल में है.
यूं तो रौनक हर तरफ है फिर भी दिल लगता नहीं
क्या बताएं हम किसी को क्या कमी महफ़िल में है.
पूछो उससे बोझ हसरत का लिये फिरता है जो
क्या मज़ा उस ज़िंदगी में, गुज़री जो किल किल में है.
कांपती है सोच की कश्ती मेरी मंझदार में
बरकरार उम्मीद इस पर भी लबे - साहिल में है.
धूप से तपती हुई वीरान है राहें सभी
शबनमी अंदाज़ देवी देख क्या मँजिल में है.
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गजलः १५६
भटके हैं तेरी याद में जाने कहां कहां.
तेरी नज़र के सामने खोये कहां कहां.
रिशतों की डोर में बंधे जाते कहां कहां
उलझन में राहतें कोई ढूंढे कहां कहां.
ख़ाहिश की कै़द में सदा जीवन किया बसर
अब उसके रास्ते खुले जाके कहां कहां.
ऐ जिंदगी सवाल तू, तू ही जवाब है
तुझसे मिलन की आस में भटके कहां कहां.
क़दमों के क्यों मिटा दिये उसने निशां तमाम
हम उनकी पैरवी में भी जाते कहां कहां.
है दाग़ दाग़ दिल मेरा मुस्कान होंट पर
रौशन हुए है रास्ते, दिल के कहां कहां.
वो लामकां में रहता है, अपनी बिसात क्या
हम लामकां को ढूंढते फिरते कहां कहां.
देवी न मुझसे पूछिये कुछ खुद को देखिये
होते है इस जहान में झगड़े कहां कहां.
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ग़ज़ल: १५८
उस शिकारी से ये पूछो पर क़तरना भी है क्या पर कटे पंछी से पूछो उड़ना ऊँचा भी है क्या?
आशियाना ढूंढते हैं, शाख से बिछड़े हुए गिरते उन पत्तों से पूछो, आशियाना भी है क्या?
अब बायाबां ही रहा है उसके बसने के लिए घर से इक बर्बाद दिल का यूँ उखड़ना भी है क्या?
महफ़िलों में हो गई है शम्अ रौशन, देखिए पूछो परवानों से उसपर उनका जलना भी है क्या?
वो खड़ी है बाल खोले आईने के सामने एक बेवा का संवरना और सजना भी है क्या?पढ़ ना पाए दिल ने जो लिखी लबों पर दास्ताँदिल से निकली आह से पूछो कि लिखना भी है क्या?
जब किसी राही को कोई रहनुमां ही लूट ले इस तरह देवी भरोसा उस पे रखना भी है क्या.
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गज़ल: १५९
यूँ मिलके वो गया है कि मेहमान था कोई उसका वो प्यार मुझपे इक अहसान था कोई.
वो राह में मिला भी तो कुछ इस तरह मिला जैसे के अपना था न वो, अनजान था कोई.
घुट घुट के मर रही थी कोई दिल की आरज़ू जो मरके जी रहा था वो अरमान था कोई.
नज़रें झुकीं तो झुकके ज़मीं पर ही रह गईंनज़रें उठाना उसका न आसानं था कोई.
था दिल में दर्द, चेहरा था मुस्कान से सजा जो सह रहा था दर्द वो इन्सान था कोई.
उसके करम से प्यार-भरा, दिल मुझे मिला देवी वो दिल के रूप में वरदान था कोई.
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